Monday, July 17, 2023

घर जैसा भोजन (व्यंग्य)

न जाने किसने क्या सोच कर कहा होगा “घर की मुर्गी दाल बराबर “…… क्योंकि जिसे न मुर्गी पसंद है न दाल ,अर्थात मुझ जैसा कोई शुद्ध सात्विक शाकाहारी उसे वैसे भी मुर्गी से भला क्या लेना देना ……? हालाँकि श्रीमती अँगूठा टेक होते हुए भी कई बार हमें समझा चुकी हैं कि हमारी समझ ख़राब है ।लेकिन अब जैसे भी है हम अपनी समझ को भला क्यों बदलें ? क्योंकि हम ठहरे चिकने घड़े ,ऐसी राय अपने आपको अच्छी समझ वालों की हमारे बारे में है ।परंतु इससे हमारी सेहत पर भला क्या फर्क पड़ता ? पर क्योंकि हम जैसे कुछ विद्वान लोग कह कह के मर गए ,”कौन क्या कहता है बिल्कुल परवाह मत करो …….. करो वही जो मन भाये ।” अब हमें हमारी थाली में बैंगन नहीं पसंद तो नहीं पसंद …….।वैसे भी हर किसी को हमेशा पड़ौस की जाली हुई दाल की ख़ुशबू भी बहुत भाती है ,लेकिन घरवाली के पकवान भी हमेशा मुँह बिगड़ा कर ही खाये जाते हैं ।इसमें दोष मेरा नहीं है बच्चे भी कई बार कहते हैं कि मम्मी पड़ोस वाली आंटी की तरह बिरयानी बनाया करो न ……. बहुत ही स्वादिष्ट बनाती है वो शर्मा आंटी ………..।वैसे तो हमारा भी कई बार मन करता है कि बच्चों की तरह हम भी अपने मन की बात कह दें श्रीमती से ,लेकिन मन की बात कहने की आजादी या तो बच्चों को होती है या फिर उनको जिनके मन की बात हम सुनना नहीं चाहते लेकिन फिर भी कुछ लोग मन की बात हमें पेल ही जाते हैं। हमारी पीढ़ी के वो लोग जो अब सठिया गए हैं या सठियाने वाली उम्र की कगार पर हैं ,उनका बचपन घर में माँ के हाथ का भोजन खाकर और घर के बुजुर्गों के मुख से राजा रानी की कहानी सुनकर ही व्यतीत हुआ है ।बचपन में हर किसी को माँ के बनाये हुए भोजन में पचास कमियाँ मिलती थी लेकिन मजबूरी है बेचारा बालक करे भी दो क्या ? उस जमाने में न पीज़ा बर्गर तो बाज़ार में मिलते नहीं थे ।हालाँकि बच्चे के साथ ही बच्चे के बाप की स्थिति भी कुछ ऐसी ही रहती थी ।लेकिन बेचारा क़िस्मत का मारा कुछ कह भी नहीं सकता था क्योंकि तब होटल में खाने का जमाना ही नहीं था।इसलिए श्रीमती भले ही जैसा भी दे,निरीह प्राणी की तरह प्रशंसा में क़सीदे पढ़ने के साथ ही जले भुने खाने के साथ ही जली -भुनी सुनने की भी आदत डालनी पड़ती थी ।हम भी शुद्ध उसी प्रजाति के प्राणी हैं ।अब तो ऐसे हालात हो गए हैं कि अगर गलती से बहुत अच्छा खाने को मिल जाये तो लगता है किसी गलत घर में घुस गये ।ये हक़ीक़त भी आज बड़ी हिम्मत करके इसलिए लिख पा रहे हैं क्योंकि श्रीमती तो पढ़ ही नहीं पायेंगी ……….मैंने आपको पहले ही बता दिया था कि उनके लिए काला अक्षर भैंस बराबर ही है ,और आप पढ़ने के बाद उन्हें सुनाने के लिए तो आयेंगे नहीं।इसलिए तो हम सीना फुलाकर कह नहीं पाते वो लिख देते हैं।हम किसी छप्पन इंच सीने वाले से कम हैं क्या ? आज जमाना बदल गया है ।खाने और खिलाने के तौर तरीक़े भी बदल गये हैं।आजकल हमारे पास बहुत से विकल्प रहते हैं।खाने और खिलाने के भी ।बच्चों को घर का ख़ाना पसंद नहीं ,ऑनलाइन ऑर्डर किया घर बैठे विविध व्यंजन हाज़िर !किसी की श्रीमती का मन आज ख़ाना बनाने का नहीं नहीं है तो ऑनलाइन आदेश हुआ और सब कुछ हाज़िर …..किसी बात की चिंता ही नहीं है ।मैंने किसिकी श्रीमती का उल्लेख इसलिए किया है क्योंकि हम तो सपत्नी अभी तक भी इस ऑनलाइन झमेले से दूर ही हैं।बच्चों की फ़रमाइशें पूरा करने में बच्चों की मम्मियों को रसोई में पसीना बहाने की ज़रूरत नहीं पड़ती ।बच्चे स्वयं ही बाप का मोबाइल उठायेंगे और और जो भी ख़ाना होता है ऑर्डर भी कर देते हैं ।माँ बाप को तो पता ही जब चलता है जब बैंक अकाउंट से पैसे कटने का मेसेज मिलता है या फिर डिलीवरी बॉय ख़ाना लाकर दरवाज़ा पर घंटी बजाता है। आजकल घर से बाहर के खाने का प्रचलन भी कुछ बढ़ गया है।हालाँकि सभी कहते हैं कि भोजन घर का ही अच्छा होता है ।फिर भी घर की अपेक्षा बाहर के खाने का चलन दिनों दिन बढ़ता जा रहा है ।जिनके घर में बनाने के साधन नहीं हैं या बनाने वाली या वाला नहीं है उनका तो ठीक है लेकिन लोग शौक़िया ही कई बार कहते हैं कि आज कुछ अच्छा खाने का मन है चलो कहीं बाहर चलते हैं ख़ाना खाने के लिए ।अब हमारी हिम्मत अभी भी इतनी तो नहीं है की हम कह सके चलो कुछ अच्छा खाने के लिए बाहर चलते हैं ।लेकिन हम भी आख़िर जीते जगाते जीव हैं एक दिन हमारी भी इच्छा हुई कि कहीं अच्छा खाने के लिए जाया जाये ।हमने भी श्रीमती जी से कह ही दिया ,”प्रिय तुम भी दिन भर घर के काम में थक जाती होगी,आज चलो बाहर ही कहीं होटल में ख़ाना खाने के किए चलते हैं।” हमारा इतना कहना था कि श्रीमती ने हमें ऊपर से नीचे तक पहले तो घूरा फिर फूट पड़ी “क्यों …………लॉटरी निकल गई है क्या …… या मेरे हाथ का खाते-खाते मन भर गया …?”अब आज की आधुनिक नारी होती तो बाहर खाने के नाम से उछल पड़ती …… ख़ुशी से झूमने लगती …….लेकिन हम ठहरे सठियाई उम्र वाली श्रेणी के जीव ।फिर भी हमने जैसे तैसे उन्हें तैयार किया और रात्रि भोज के लिए अपने दुपहिये पर सवार होकर निकल लिए स्वादिष्ट व्यंजनों की तलाश में …..। एक अच्छा सा लगने वाले होटल के सामने हमने अपना दुपहिया वाहन खड़ा किया और श्रीमती को वहीं खड़ा कर हम अंदर गए कि पहले हम अंदर स्थितियों को जाँच कर आते हैं।हम अंदर जैसे ही घुसे तो सामने ही बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था ,”घर से दूर घर,जैसा खाना ,” पढ़ते ही हमारा माथा ठनका ,भला ये क्या मज़ाक़ है …….. घर के खाने से निजात पानी के लिए तो यहाँ आए और यहाँ लिखा है घर जैसा खाना ……….? हम तुरन्त उल्टे पैर बाहर आये ,दुपहिया उठाया और श्रीमती जी के साथ आगे की तरफ़ प्रस्थान कर गये।श्रीमती जी ने पूछा भी कि क्या हुआ ? अब उनकी इस ‘क्या ‘का हम क्या जवाब देते ।हमने कह दिया ,”यहाँ कुछ ठीक नहीं लगता …… आगे देखते हैं ।” थोड़ी दूर पर एक ओर अच्छा सा होटल दिखा लेकिन यह क्या …? उसके तो मुख्य द्वार पर ही टंगा था-“घर से दूर घर जैसा स्वादिष्ट भोजन “ पढ़ते ही हम बिना रुके आगे बढ़ लिए ।अब भला जब घर में ही स्वादिष्ट भोजन मिलता तो हम भला इनके द्वार पर क्यों आते..? एक अन्य होटल पर मैंने देखा वहाँ कहीं भी नहीं लिखा था घर जैसा खाना ।हम कुछ संतुष्ट हुए।श्रीमती जी सहित हम अंदर घुसे ही थे कि काउंटर पर बैठी एक सुंदर सी दिखने वाली बाला से हमने मन की संतुष्टि के लिए पूछ ही लिया- “आपके यहाँ ख़ाना तो अच्छा है न…..।” उस बाला ने हमें पहली नज़र में ही परख लिया कि हम पहली बार ही यहाँ आये हैं ।वह तुरन्त हमारे सवाल को लपकते हुए बोली -“आप बिलकुल चिंता मत कीजिएगा …बहुत स्वादिष्ट …… बिल्कुल घर जैसा ही स्वादिष्ट ख़ाना मिलेगा आपको …।”जबाब सुनते ही श्रीमती जी हमारे कान में फुसफुसाई ,” जब घर जैसा ही ख़ाना है तो घर ही पर खा लेंगे ।”बात भी शतप्रतिशत सही है ।हम तुरन्त वापस बाहर आ गये ।उस बाला के आग्रह को अनसुना कर दुपहिया उठाया और सीधे पहुँच गए अपने आरामगाह पर ।हम पहुँचे ही थे कि श्रीमती जी की प्रिय सखी मिसेज़ शर्मा ,हाथ में एक कटोरा लिए आ धमकी ।मैंने सोचा ज़रूर उनके घर में शक्कर की हड़ताल हो गई,इसलिए शक्कर मंगाने आ गई ।लेकिन तभी हमारे कानों में आवाज़ आई ,”गुड्डू की मम्मी ,आज शाही पनीर बनाया है …….बहुत ही स्वादिष्ट बना है बिल्कुल होटल के जैसा ……साथ में तंदूरी बटर रोटी भी है ,…. होटल जैसी ………पंडित जी को भी जरुर टेस्ट कराना …… ।”हम चकराये कि आख़िर ये माजरा क्या है …….. ? होटल में घर जैसा ख़ाना … और घर में होटल जैसा ……अजीब गोरकधंधा है भाई …… हम तो ना समझ पायेंगे ………. समझेंगे भी कैसे ……क्योंकि हमने तो कभी कुछ समझने की कोशिश ही नहीं की ,कि घर का ख़ाना भी स्वादिष्ट हो सकता है ।इसीलिए तो बाहर भी लोग लिखते हैं ,-“घर से दूर ,घर जैसा ख़ाना ।“ डा योगेन्द्र मणि कौशिक कोटा mob 9352612939

Thursday, June 1, 2023

दो हज़ार का नोट

दो हज़ार का नोट …. ————————(व्यंग्य) डा योगेन्द्र मणि कौशिक
सुबह सुबह श्रीमती जी न जाने किस उठा पटक में लगी थी ।अलमारी का सारा सामान बाहर ……… एक -एक कोने का बारीकी से निरीक्षण ……….कभी मेरी पेंट की जेबों की तलाशी ,तो कभी पर्स की ,…………..कुछ समझ नहीं आ रहा था की आख़िर माजरा क्या है ? आज तो सुबह की चाय भी उनकी इस पड़ताल के नाम पर शहीद हो गई ।वैसे तो रोज़ सुबह सुबह आँख खुलते ही चाय की गरमा गरम प्याली सामने आ जाती थी ।लेकिन लगता है आज श्रीमती जी के सपने में ज़रूर कोई क़ीमती चीज़ गुम हो गई है ।तभी सुबह से उसे खोजने में लगी हैं।हालाँकि श्रीमती के किसी कार्य में बाधा डालने का साहस किसी भी सभ्रांत पति में नहीं होता फिर भी चाय की शहादत की संभावना को ध्यान में रखते हुए हमने दुःसाहस कर ही डाला और धीरे से पूछ ही लिया ,”क्या हुआ ………आज सुबह से क्या खोज रही हो …………मैं कुछ सहायता करूँ ……..?’’ हमारा इतना पूछना था कि वे तुरंत फट पड़ी ,”क्या ढूँढेंगे आप ……..कुछ होगा तो मिलेगा आपको ………?’’ अजीब उत्तर था ……….जब कुछ है ही नहीं तो भला वे ढूँढ क्या रही है ।एक बार सोचा चलो छोड़ो , हो सकता है आज विशेष खोज दिवस हो ।कुछ देर इंतज़ार के बाद हमारे रहा नहीं गया ।हमने बीच में टांग फ़साते हुए पूछ ही लिया -‘’जब कुछ गुमा ही नहीं है तो भला तुम ढूँढ क्या रही हो ………?’’ -“दो हज़ार का नोट ………..।’’ -“कहाँ रखा था ……….?’’ वे तपाक से बोली ,”आप बताओ कहाँ हैं दो हज़ार के नोट …………मैंने सब जगह ढूँढ लिये कहीं नहीं मिला ……….?’’ हम धीरे से बोले ,”सुबह सुबह क्या काम आ गया भला ,……….दो हज़ार के नोट ही क्यों चाहिए भला ? कुछ मंगाना है तो पाँच सो के चार नोट से काम चला लो - - - दो हज़ार का बाद में ढूँढ लेना ………..-।’’ -“मुझे कुछ नहीं मंगाना ……….!’’ -“फिर सुबह सुबह इतनी उखाड़ पछाड़ क्यों ………?’’ हमारा इतना पूछना था कि श्रीमती जी का पारा ओर चढ़ गया ।उनका विशेष प्रसारण प्रारंभ हो गया ,” आप तो सोसाइटी में हमारी इज्जत का जनाजा निकलवाकर रहोगे ।आपको मालूम है कि दो हज़ार का नोट बंद हो रहा है ।सुबह से ढूँढ रही हूँ कि दो हज़ार के कुछ नोट मिल जायें तो मैं भी पड़ोसन से कह सकूँ कि हमारे पास भी हैं दो हज़ार के नोट ………अब जब सब नोट बदलवाने जाएँगे तो सब के बीच में हमारी भला क्या इज्जत रह जाएगी ,जब सबको पता लगेगा कि हमारे पास एक भी दो हज़ार का नोट नहीं है ?’’ हमारा मुँह आश्चर्य से फटा रह गया ………! -“श्रीमती जी ,दो हज़ार के नोट से हमारी इज्जत का क्या लेना देना ……..?’’ -“आपको भला क्या ………? जब पड़ोसन पूछेंगी तो मैं किसी को क्या जवाब दूँगी …….?घर में एक भी दो हज़ार का नोट नहीं है ……….?’’ -“इसमें भला किस बात की बेज्जती ?हम सभ्रांत लोग हैं ,नोटों की जमाख़ोरी नहीं करते।तुम्हें मालूम है ,पिछली बार भी जब एलान हुआ था कि आज रात से ……..नोट चलन में नहीं रहेंगे ………तब भी हम कितने आराम से थे ………?’’ हम इसके आगे कुछ कह पाते उससे पहले ही श्रीमती जी बोल पड़ी ,”आपको क्या पता ,पिछली बार नोट बंदी में भी आपके पास भला क्या रखा था - ………..सभी बड़ी शान से बताते थे ………कोई दस हज़ार कोई पचास हज़ार बैंक में जमा कराने जा रहा था ………किसी किसी ने लाखों रुपये दूसरों के हाथों मज़दूरी दे-दे कर बैंक में रुपये जमा कराये ।बस एक हम ही इस सौभाग्य से वंचित रहे ।आपको क्या पता कितनी शर्मिंदगी महसूस होती थी जब सब अपनी अपनी कहानी सुनने थे कि वे कैसे बैंक की लाइनों में लग कर ,रुपये जमा कराके आये ।लेकिन हम थे कि बस ……….। अब श्रीमती जी की नाराज़गी अपनी जगह है ठीक हो सकती है ।लेकिन हम ठहरे एक आम वेतन भोगी नागरिक ,हमारे पास भला कौनसा कला धन जमा है ।पहले भी जब एलान हुआ किआज रात से ………..के नोट चलन से बाहर हो जाएँगे ।तब भी एक नौकरी पेशा व्यक्ति या एक मज़दूर के पास भला कहाँ घर में कोई धन जमा था ……….और जिनके पास जमा था उन्हें तो कोई असर ही नहीं पड़ा ,क्योंकि सभी ने अलग अलग रास्तों से ,अपनी अपनी व्यस्था कर ही ली थी ।जब आम जनता ही कभी बैंक की लाइन में तो कभी ए टी एम की लाइन में था ।कहीं भी कोई बड़ा तथाकथित नेता या कोई बड़ा आदमी किसी लाइन में नहीं मिला ।तब भी जनता के हितेषी आराम से अपने आलीशान बंगलों में आराम कर रहे थे ।दूसरी बार भी कोविड के समय भी एलान हुआ कि आज रात से …………सब बंद ,तब भी मार केवल ग़रीब ,मज़दूर पर ही पड़ी ।इस बार साहब जी ने आज रात वाला एलान नहीं किया ।क्योंकि पिछले दो बार के रात वाले एलान के परिणाम शायद वे भी पचा नहीं पाये ।इसलिए एलान रिजर्व बैंक द्वारा कराया गया ,ताकि इस बार का ठीकरा भारतीय रिजर्व बैंक के सर पर फूटे ………!वैसे कुछ अच्छा परिणाम मिला तो तारीफ़ साहब की ही होगी और कुछ उल्टा हुआ तो रिज़र्व बैंक भुगतेगा ……..हमें क्या ? डा योगेन्द्र मणि कौशिक कोटा

Wednesday, May 17, 2023

हम भी चले परदेस ………..(व्यंग्य)

हम भी चले परदेस …. ———————- (व्यंग्य ) जब किसी की विदेश में नौकरी लगती है तो हमारे प्राय: मुँह से निकलता भला विदेश में रहकर नौकरी क्यों करना ? अपने देश में रहो …. अपने परिवार के लोगों के साथ रहो ….माँ बाप ने पढ़ाया ,लिखाया है ….. उनके पास रहोगे तो बुढ़ापे में माँ बाप की भी थोड़ी सेवा होगी ……।भला ये क्या बात हुई कि बच्चों को पढ़ाओ - लिखाओ और बच्चे हैं कि अपने पैरों पर खड़े होते ही बस पुर्र से उड़ जाते हैं माँ बाप को छोड़ कर …..।विदेशी नौकरी भी कोई नौकरी है ……? लेकिन एक दिन हमारे सपूत ने श्रीमती जी को फ़ोन किया कि अमेरिका में उसे बहुत अच्छा अवसर मिला है नौकरी का ।बड़े चहकते हुए श्रीमती ने बताया कि बेटा विदेश जा रहा है ।अमेरिका में नौकरी लगी है ।हम भी ख़ुशी से उछले और हमारे विदेश में नौकरी करने वालों के प्रति नकारात्मक भाव मिनटों में न जाने किस कोने में जा छुपे। हमें जो भी मिलता हम सीना फुलाकर बड़े रोब से सुनाते ,” मेरा बड़ा बेटा जल्दी ही अमेरिका जा रहा है । बहुत बड़ी कंपनी में ……….बेटा इंजीनियर है ……….।” बेटे के विदेश जाने के बाद भी जब भी कभी कोई पूछता कि बेटा क्या करता है तो हम शान से छप्पन इंची सीना फुलाकर कहते ,” बेटा विदेश में है । बहुत बड़ी कंपनी में इंजीनियर है। “कुछ दिनों बाद ही लोगों ने पूछना शुरू कर दिया कि कब जा रह हो अमेरिका । अब अमेरिका जाना कोई दिल्ली मुंबई जाना जैसा तो है नहीं कि टिकिट लिया और बैठ गए ट्रेन में ……।अमेरिका के लिए सबसे बड़ी अड़चन थी वीज़ा बनवाना । जैसे तैसे वीज़ा फॉर्म भरा ,और वीज़ा की तारीख़ मिलने के बाद वीज़ा इंटरव्यू की तैयारी कुछ इस तरह करनी पड़ी जैसे किसी बड़ी परीक्षा की तैयारी हो ….। इस तैयारी का भार श्रीमती के ऊपर ही था क्योंकि वो अच्छी पढ़ी लिखी है । वैसे पढ़े लिखे तो हम भी हैं लेकिन हम पढ़े कम और लिखे ज़्यादा हैं ।वैसे भी हम तो उनके सामने बस कहने के ही पढ़े लिखे हैं । इसलिए हम ऐसी जगह पैर ही नहीं फ़साते जहाँ से निकलने के लिए पैर ही कटाना पड़े।श्रीमती जी ने इंटरनेट पर मिलने वाली सारी वीडियो ,ऑडियो, और अनेकों लेख सब घोट कर पी डाले ।हम आराम से पैर पसारकर सोते और वे दिन रात वीज़ा परीक्षा की तैयारी में लगी रहती ।उन्होंने हमसे भी कई बार कहा कि कुछ पढ़ लो … लेकिन हम उन्हें हमेशा कह देते चिंता मत करो …. क्या होगा …… रद्द हो जाएगा वीज़ा ….. बस ।अब उन्हें भला कैसे कहते कि यदि हम पढ़ेंगे तो भला लिखेगा कौन ? श्रीमती जी की कृपा से वीज़ा भी मिल गया क्योंकि मैं यह नहीं कह सकता कि ऊपर वाले ली कृपा से वीज़ा मिल गया क्योंकि ऊपर वाले की सही कोशिश की मुझे कोई जानकारी भी नहीं है ।वीज़ा मिलते ही हमारे साहिबज़ादे ने टिकिट भी भेज दिये ।टिकिट आ गये तो अब अमेरिका तक अट्ठारह घंटे का सफ़र ,वो भी हवाईजहाज़ में ……. । ट्रेन में तो अट्ठारह दिन भी निकल जायें क्योंकि जब ट्रेन रुके आराम से स्टेशन पर उतारो ,जब चाहो चाय पिओ ,पकौड़े खाओ ।लेकिन हवाई जहाज़ में ………..। ख़ैर अब धीरे धीरे वो दिन भी आ गया जब हम उड़ने के लिए तैयार हो गये। हवाई अड्डे पर प्रवेश करते ही लगा जैसे किसी दूसरे देश में पहुँच गए हों।क्योंकि अभी तक रेलवे स्टेशन की ही भीड़ भाड़ देखी थी । रेलवे स्टेशन पर तो कही चाय वाला तो कहीं पकौड़े वाला , की आवाज़ें सुनाई देती रहती हैं जिससे एहसास हो जाता है कि कोई स्टेशन आयाहै । लेकिन यहाँ तो सब चुपचाप एक लाइन से दूसरी लाइन में चलते जा रहे हैं।जिन्हें देख के लगता है कि ऊपर वाले ने रेल की सवारी अलग बनाई हैं और हवाई जहाज़ की अलग…… ।कभी कोई हमारी तलाशी लेता है ,तो कभी कोई हमारे सामान की,लगता था जैसे सारे आतंकी लोगोंको यहाँ एकत्रित किया गया है ,जाँच के लिए …… अजीब लोग हैं ……. ख़ैर हमें क्या …… ?श्रीमती जी ने चलने से पहले हमें समझा दिया था ज़ुबान को बत्तीसी के अन्दर ही रखना …….बाहर नहीं दिखाई देनी चाहिए ।रास्ते में मुँह तभी खोलना जब कोई सवाल करे…….किसी से कोई बहस नहीं करनी है ………कहीं भाषण भी नहीं देना ….. कोई कविता भी नहीं सुनानी किसी को भी ।वर्ना ऐसा न हो जाये कि बीच रास्ते से ही अमेरिका वाले आपको वापस इंडिया पार्सल कर दें। अमेरिका जाने के उत्साह,में अच्छे बच्चे की तरह हमें सारी शर्तें मंज़ूर थी। क्योंकि हमें भी तो अमेरिका से आकर मिर्च मसालों साथ कुछ क़िस्से कहानियाँ लोगों को सुननी थी ।हवाई अड्डे की सारी बाधायें पार कर हम अपनी उड़ान में पहुँचे तो द्वार पर ही उड़नसुंदरी ने बड़े अदब के साथ स्वागत किया तो हमनें भी बड़े गर्व के साथ सीना फुलाकर स्वागत स्वीकार किया और अपनी निर्धारित सीट पर पहुँच कर ,बड़ी शान से श्रीमती को बताया ,” देखा तुमने हमारी प्रसिद्धि …… द्वार पर खड़ी सुंदरी ने कितने सम्मान से मुस्कुरा कर हमें गुड मॉर्निंग कहा ……. ज़रूर किसी कवि सम्मेलन में इसने मुझे सुना होगा या मेरा कोई लेख पढ़ा होगा … और टिकिट पर नाम देखते ही देखा कैसे पहचान गई ……।”परंतु श्रीमती के लट्ठ से जबाब से हमारी तो बोलती ही बंद हो गई ।वे तपाक से बोली ,” ज़्यादा मत फूलो …..उसका रोज का काम है ये …… मुस्कुराना ….. और गुड मॉर्निंग करना …ज्यादा हवा में मत उड़ो ।” अब हम भला क्या जबाब देते …. उनका जबाब ही ला जबाब था ।हमें मालूम था कि इस उड़ान में ख़ाना पीना सभी फ़्री था । इसलिए हमने सोच रखा था कि खाने पीने में कोई कमी नहीं रखनी है । जो भी आएगा ले लेंगे। पूरे रास्ते खाएँगे पियेंगे और सो जाएँगे ….. ।सीट के सामने ही टी वी लगा था आराम से बिना किसी बाधा के देखेंगे ,क्योंकि घर के टी वी का रिमोट तो श्रीमती जी के हाथों में रहता है आज हम बिना किसी रोक टोक के आराम से टी वी के चैनल भी बदल सकते हैं।भले ही कुछ घंटों के लिए ही सही टी वी के सामने हम आज अपनी मर्ज़ी के मालिक थे । हवाई जहाज़ के उड़ान भरते ही जब भी कोई उड़न सुंदरी हमारी सीट के पास से गुजराती तो हमें बस एक ही इंतज़ार रहता कि कब कुछ खाने पीने का सामान लाए ।आख़िर सब फ़्री जो मिलने वाला था ।हालाँकि वे सब टिकिट में पहले ही वसूल कर लेते हैं ।इसलिए अपने भुगतान की वसूली करने में भला हम पीछे क्यों रहें ? लेकिन जब भी हम हसरत भरी निगहों से उनकी ओर देखते तो श्रीमती की तीखी नज़रें तुरंत हमें ताड लेती और हमारी तरफ़ उनकी ये तीखी नज़रें देखते ही हमारा दिल बैठने लगता । वो अच्छा हुआ कि थोड़ी देर बाद ही एक ट्रॉली लिए उड़ान सुंदरी प्रकट हुई और नाश्ते का पैकेट देते हुए ड्रिंक्स के विषय अंग्रेज़ी में कुछ बोला ।लेकिन हम आधा अधूरा ही समझ पाये ।फिर भी उसकी ट्रॉली में सजे पेय की तरफ़ इशारे से ही समझा दिया ……….दिस… दिस…. एंड दिस ……. ।उसने पहले तो हमारी तरफ़ देखा लेकिन फिर बड़े अदब से तीन तरह का पेय हमें दिया और आगे बढ़ गई । श्रीमती जी को हमारी यह हरकत बिल्कुल पसंद नहीं आई।हमारा हाथ दबाते हुए उन्होंने कुछ आक्रोश में लेकिन धीरे से कहा ,” क्या कर रहे हो ।” लेकिन हमने पक्के बेशर्मों की तरह उनकी तरफ़ आँख उठा कर देखने का भी कष्ट नहीं किया ।क्योंकि हमें मालूम था कि भाषण सुनने से अच्छा है कि हम फ़िलहाल खाने पीने पर ध्यान दें।हमें तो पैसे वसूल करने थे इसलिए हमारा सीधा जबाब था कि जब खाने के पैसे टिकिट के साथ लेने में उन्हें कोई शर्म नहीं हैं तो भला हमें शर्म किस बात की ? हमने तुरंत नाश्ते का पैकेट खोला और साथ ही तीन तरह के पेय में से पहले एक खोला ।उसका टेस्ट कोका कोला जैसा था …जैसा क्या था वही थी …… हम गटागट एक साँस में ही गटक गए ।दूसरे में कुछ गर्मागर्म सा लगा खोला। तो उसमें कॉफ़ी थी हमने तुरंत वो भी पी ली ।हालाँकि श्रीमती जी ने समझाया कि क्या कर रहे हो पहले ठंडा और अब गर्म ….. । पर हमें ठंडे गर्म की कोई चिंता नहीं थी हमें तो पैसे वसूलने थे । आस पास के लोग भी शायद देख रहे थे लेकिन मुझे क्या ……?जब पैसा दिया है तो फिर भला शर्म कैसी । अभी तो एक गिलास और बाक़ी था ।वो भी तो पीना था ।इस बीच क्या पता दोबारा नंबर आ जाये तो फिर से भी लेना था।कॉफी के बाद अब तीसरे गिलास की बारी थी ।हमने वो भी खोल ही लिया ….. आख़िर टिकिट के पैसे जो वसूल करने थे । इस बार के गिलास के पेय का स्वाद कुछ अच्छा नहीं था । लगा जैसे कोई दवा पीनी पड़ रही है …… लेकिन जब ले ली तो पीनी ही थी ।श्रीमती जी कहती ही रही कि आप कर क्या रहें हैं कभी ठंडा कभी गर्म और अब फिर ठंडा ……ये कर क्या रहे हैं आप …….?परंतु हम कानों में तेल डालकर बैठे थे ।हमें तो कुछ सुनना ही नहीं था ।लेकिन तीसरे गिलास के पेय को पीने के बाद ,अब हमें लग रहा था कि हवाई जहाज़ तो हवा में उड़ ही रहा था लेकिन हम तो अंदर ही अंदर किसी दूसरी ही उड़ान में उड़ने लगे थे ।लग रहा था कि हम सीट पर बेल्ट बंधी होने के बाद भी सीट से कई फिट ऊपर उड़ रहे हैं।तभी हमने देख कि वह उड़ान सुंदरी एक बार फिर हमारी सीट की तरफ़ जैसे ही बढ़ी तो हमने न जाने किस धुन में कह दिया कि वन मोर ड्रिंक प्लीज़ । इतना कहते ही उसने तुरंत एक गिलास बढ़ाया तो हमने दो का इशारा किया उसने दो रख दिये ।स्वाद अच्छा नहीं था फिर भी हम एक एक करके दोनों ही तुरंत डकार गये ।अब हम सीट से कुछ ओर ऊपर उड़ने लगे थे ।साथ ही आँखें भी भारी हो गई थी । कब आँख लग गई पता ही नहीं पड़ा । हमारी आँखें जब खुली तो हमने देखा श्रीमती जी हमें पकड़ के हिला रही हैं और बार बार चिल्ला रही हैं ,” उठो ….उठो …. अमेरिका आ गया …..।”हमने आँखें मलते हुए धीरे से आँखें खोली तो देखा सभी लोग उतरने की तैयारी में हैं।खिड़की से देखा तो बाहर बहुत से हवाई जहाज़ खड़े थे ।जिसे देख के लगा कि हम सच में अमेरिका आ ही गया । लेकिन हमारा दोनों समय का भोजन …….गया पानी में …..टिकिट के साथ ख़ाना भी बुक था । डा योगेन्द्र मणि कौशिक कोटा - [ ]

Friday, March 24, 2023

योगा …. होगा …..नहीं होगा

योगा होगा ….. ?नहीं होगा …..? (व्यंग्य) हमारे मोहल्ले के लल्लू जी ,नाम के भले ही लल्लू लाल हों लेकिन हैं बड़े काम की चीज ।चुस्त,दुरुस्त ,फुर्तीले , समाजसेवा की भावनाओं से ओत प्रोत ……प्रवचन में इनने प्रवीण कि यदि इन्हें प्रधान मंत्री बना दिया जाए तो एक दिन में देश का काया कल्प हो जाए। रोज़ प्रातः भ्रमण के बाद पास के पार्क में योगा करने के साथ साथ औरों को भी कराने का उन्हें इतना शौक़ था कि उन्हें कोई भी सज्जन व्यक्ति आस पास हाथ पैर हिलते हुए दिख जाता तो तुरन्त उसे अपने पास बुलाते और योगा के फ़ायदों की लम्बी चोडी लिस्ट का प्रवचन कर उन्हें कल से नियमित ,उनके सानिध्य में सही तरह से योगा सीखने का आदेश इस तरह पारित कर देते ।जैसे सरकार कोई बिल पारित कराने के लिए बिना विपक्ष को मौक़ा दिए ही सीधे हर्ष ध्वनि मत से उस बिल को पारित मान लेती है । हम भी एक दिन उनके मोहपाश में आ गए ,और हमने सपत्नी उनके योगा शिक्षा सम्मेलन में संख्यात्मक वृद्धि कर ही दी । रात को सोने से पहले सुबह सवेरे शय्या त्याग की चिंता लग जाती । क्योंकि पहले तो बिना किसी बंधन के प्रातः भ्रमण हो रहा था ,तो जब भी सुबह उठ गए तभी चले गए I लेकिन अब उनके समय से बांधे थे । जैसे बचपन में,क्लास में देरी से पहुँचने पर देरी के कारणों की लिस्ट मस्तिष्क में रखनी होती थी ,अब वैसे ही एक बार फिर बचपन की क्लास की याद ताज़ा हो गई ।श्रीमती ने हमें समझाया कि इसमें हित तो हमारा ही है । इस बहाने नियमितता भी बनी रहेगी और स्वास्थ्य भी सही रहेगा ही ।अब श्रीमती समझाए और हम न समझें ऐसा कैसे हो सकता है । रोज़ सवेरे प्रातः भ्रमण के बाद हमारा योगा शुरू हो ही गया । कुछ ही दिनों में योग के साथ ही घर परिवार की बातें भी हो जाती थी । एक दिन बस यूँ ही हमने लल्लू जी पूछ लिया ,’आप अकेले ही आते हैं ,आपकी श्रीमती जी को भी साथ लाया करो । हमारा यह पूछना था कि उनके अन्तरमन की पीड़ा छलक गई ।बहुत प्रयास कर चुका लेकिन वो है कि कभी तैयार ही नहीं होती ,योगा के लिए। हमने तुरंत प्रश्न दागा ,” क्यों …..? आप तो जमाने भर को समझाते हैं फिर उन्हें समझाने में क्या …?” वे धीरे से बोले , “वो पत्नी है हमारी ……बाहर वालों को समझाने में और पत्नी को समझाने में ज़मीन आसमान का अन्तर है । हर कोई दूसरे की बीबी को तो समझा सकता है लेकिन स्वयं की बीबी को समझना जैसे सत्ता दल द्वारा विपक्ष को समझाना।” उनकी बात भी सही थी । यदि कोई पूछे की सबसे कठिन कार्य का नाम बताओ तो सो में से 99 लोगों का जबाब यही होगा कि स्वयं की बीबी को समझाना ही सबसे विकट कार्य है । अब इसी सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए एक दिन हमाने अपनी विद्वाता का प्रदर्शन करने की ठान ली और उनके सामने प्रस्ताव रखा कि हम हैं न , हम समझाएँगे आपकी श्रीमती को ।हमारे प्रस्ताव पर पहले तो उन्होंने ऊपर से नीचे तक हमारा अवलोकन किया फिर धीरे से बोले ,”आप कर पाएँगे ?” ‘क्यों नहीं’ हम तपाक से बोले जैसे हमने दूसरों को समझाने में पी एच डी कर रखी हो । फिर भी ,हमने बोल ही दिया ,तो अब कुछ करने की भी बारी थी । उन्होंने भी बड़ी आशा भारी निगाहों से हमारा निरीक्षण करने के बाद अनुरोध किया ,”तो फिर चलो ।” हम भी मुँह उठाकर चल दिए हमारी श्रीमती जी के साथ क्योंकि कहते हैं कि प्रत्येक सफल पुरुष की सफलता के पीछे स्त्री का हाथ होता है ,इसलिए मैं भी भला अपनी सफलता के श्रेय से श्रीमती जी को क्यों दूर रखूँ। अब हम जैसे ही लल्लू जी के घर पहुँचे तो देखा कि,भले ही सुबह के नो बज गए हों परन्तु लल्लू जी की लाजो के शयन कक्ष के द्वार पर भौर की किरण पहुँचने का समय अभी नहीं हुआ था। उनकी श्रीमती लाजो ,लाज की मारी अभी तक भी शयनकक्ष में निद्रा का आनन्द ले रही थी ।अब यदि आप सुबह सुबह नो बजे किसी की नींद में खलल डालोगे तो कुछ न कुछ अनर्थ तो होना ही था । हम बाहर सोफ़े पर ही पसरे हुए थे लेकिन अन्दर से आ रही मधुर ध्वनि से आभास हो गया था कि अन्दर तूफ़ान मचा है । फिर भी कुछ देर इन्तज़ारके बाद एक बेडोल सी महिला आकृति प्रकट हुई ।हम उनकी भृकुटी देख कर समझ गए कि मामला कुछ जटिल पड़ने वाला है । फिर भी आपसी परिचय के बाद लल्लू जी ने हमारे तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि ये बहुत अच्छे आयुर्वेदिक चिकित्सक हैं और हमारे साथ ही योगा करते है । इनकी मैडम भी साथ ही योगा करती है । योगा शब्द आते ही हमने तुरन्त सवाल दाग दिया ,”आप क्यों नहीं आती योगा के लिए ? आप भी आया कीजिए लल्लू जी के साथ ,अच्छा लगेगा ।” लाजो जी तपाक से बोली ,”क्यों……? क्या अच्छा लगेगा ….? क्यों करें हम योगा …….. ? योगा से क्या होगा ?” हमारी श्रीमती मोर्चा सम्भालते हुए बोली ,” योगा से क्या नहीं होगा ……. इससे हम स्वस्थ और चुस्त रहते हैं..” “तो क्या मैं अस्वस्थ हूँ …..सुस्त हूँ ……?” “नहीं .. मेरा मतलब है कि आप बीमार नहीं होंगी ……. शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी …।” “ कहाँ तक बढ़ेगी ………? रोज़ योगा करते हुए भी कोरोना ने इन्हें पटकनी दे दो थी एक महीने तक बिस्तर पर पड़े पड़े पंखे की पंखुड़िया निहारते रहते थे ।” “ ऐसे तो कभी कभी हो जाता है, लेकिन योग से कोई जटिल बीमारी हमारे पास नहीं आती …… बुढ़ापा भी आराम से कट जाता है ।” लेकिन लाजो जी बिना लजाए तपाक से बोली ,” तो क्या हम बुढ़ापे के लिए जवानी बर्बाद कर दें…….. बुढ़ापा जब आएगा , देखा जाएगा लेकिन अभी क्या ……..?लेकिन अभी जो जवानी है उसका क्या …….? आप तो रिटायर लोग हैं … कुछ काम धाम तो है नहीं ……. लेकिन इनके साथ मेरा समय क्यों बर्बाद कर रहे हैं……….?वैसे भी इनकी बुद्धि तो वैसे भी ख़राब है ।न जाने कौनसा भूत सवार है ……..? लेकिन आप तो समझदार लगते हैं।” हमारी समझदारी पर प्रश्न चिन्ह लगाने के बाद भी हमने हिम्मत नहीं हारी और सम्भालते हुए हम धीरे से बोले ,”आप तो बुरा मान गई ………?” “क्यों न मानूँ बुरा ………? अब कोई आपको सुबह सुबह नींद से जगा कर स्वास्थ्य की घुट्टी पिलाने लगे तो आपको कैसा लगेगा ……… नहीं जीना मुझे सो साल ……. भला क्यों जीना है लम्बी ज़िंदगी ………कम जीओ …. मगर आराम से जीओ …….। बीमार होंगे तब देख लेंगे ……..डाक्टर हैं न देखने के लिए ………. हमारे स्वस्थ की चिंता डाक्टर करेगा । हम क्यों पहले से ही चिंता में दुबले होते रहें।” बात उनकी भी सही थी ।उनके तेवर देख कर हमने वहाँ से निकलने में ही समझदारी समझी । दूसरे ही दिन से लल्लू जी ग़ायब ………। लगभग एक माह बाद एक बार फिर उन्हें देखा तो लगा जैसे मुँह छिपाकर चुपके से निकलने वाले हैं । हमने ज़ोर से आवाज़ लगाई तो जैसे ही वे हमारी तरफ़ पलटे ,तो उन्हें देख कर हम हैरान ……..हाथ में प्लास्टर बंधा था ,चाल में भी कुछ लँगड़ाहट थी ।उनकी हालत देख हम प्रश्नवाचक दृष्टि से बोले ,यह क्या …..?कोई एक्सिडेंट हो गया ……? लल्लू जी कुछ बुझे बुझे से बोले ,”हाँ एक्सिडेंट ही समझो ……उस दिन जब आप पधारे थे तो बाद में हमारे घर में ……………….” उनकी ज़ुबान कुछ कह पाए उससे पहले ही हमने स्थिति को सम्भालते हुए कहा ,”लाजो जी तो ठीक हैं……..?” ठंडी आह भरते हुए बोले ,” हाँ ठीक ही होंगी एक महीने से मायके में हैं …।” उनके इस जबाब से हमारे गले में कुछ शब्द अटके ही रह गए ,”तो फिर योगा ……. होगा ….? नहीं होगा……।” डा योगेन्द्र मणि कौशिक फ़्लैट नo 504 सी ब्लॉक,ट्रिपोलिस सिटी मॉल के सामने ,झालावाड़ रोड कोटा Pin 324005 Mobile 9352612939

Tuesday, June 14, 2022

यादगार दिन ,मुंबई भ्रमण का

कभी कभी हम कहीं बाहर जाते हैं तो नई जगह पर ओटो ‘ टेक्सी या बस का सफ़र भी करना ही होता है और नए शहर की कुछ नई यादों को हम अपनी झोली में भर लाते हैं,लेकिन कभी कभी कुछ ऐसे लोग मिल जाते हैं कि अनजाने में ही छोटा सा सफ़र भी यादगार बन जाता है ।कुछ ऐसा ही कल हुआ । आजकल मैं सपत्नी मुंबई में बेटे के पास आया हूँ ।सनातन धर्मावलम्बी होने के कारण कभी कभी मंदिर दर्शन के विचार भी प्रबल हो जाते हैं तो मैं मंदिर भी चला जाता हूँ। मुंबई में भी सिद्धि विनायक और महालक्ष्मी मंदिर बहुत प्रसिद्ध हैं अतः मुंबई के सिद्धि विनायक और महालक्ष्मी मंदिर जाने का विचार बना । हम सभी घर से दोपहर को कैब द्वारा सिद्धि विनायक मंदिर गए और वहाँ आराम से दर्शन किए। दोपहर को इसलिए ताकि अधिक भीड़ का सामना न करना पड़े,क्योंकि हमने सुना था कि सुबह शाम वहाँ बहुत भीड़ होती है और अधिक भीड़ में हो सकता है गणपति महाराज की कृपा दृष्टि हम पर कुछ कम पड़ पाए । दोपहर का निर्णय सही भी रहा क्योंकि उस समय हमें दर्शन के लिए अधिक मशक्कत नहीं करनी पड़ी । वहाँ से महालक्ष्मी मंदिर के लिए टैक्सी से रवाना हुए तो टैक्सी में बैठते ही हमें अहसास हो गया कि यह टैक्सी ड्राइवर तो ड्राइवर के साथ साथ मुंबई दर्शन के लिए अच्छा गाइड भी है ।लगभग 15-20 मिनट के सफ़र में उसने पूरे रास्ते के इतिहास के साथ वर्तमान के दर्शन बड़े ही मज़ेदार ढंग से करा दिए । कल 13 जून तारीख़ थी जगह जगह आदित्य ठाकरे के नाम के बड़े बड़े होर्डिंग लगे थे तो उसने बताया कि आज साहिब का जन्म दिन है ।साहिब …..के नाम पर हमने उसकी तरफ़ देखा तो उसने स्पष्ट किया ,साहिब आदित्य ठाकरे का जन्म दिन है आज …. बहुत अच्छा है साहिब …. बहुत काम कराया है मुंबई में ….. महाराष्ट्र का भावी मुख्य मंत्री है साहिब ……। ये जो कोस्टल रोड बन रहा है वो साहिब के प्रयास से बन रहा है। कई बार आधी रात को भी देखने आजाते हैं कि काम ठीक हो रहा है या नहीं अगले साल 2023 में बन कर पूरा हो जाएगा ।उसकी बातों से हम समझ गए कि यह पक्का शिव सैनिक है । रास्ते में एक पाँच मंज़िला खूब सूरत बंगले की ओर इशारा करते हुए उसने बताया कि यह बंगला मुकेश अम्बानी ने अपनी बेटी इशा अम्बानी को गिफ़्ट दिया है । तीन हज़ार करोड़ का बंगला है ।इसमें तीस कमरे हैं दो लोग रहते हैं और तीन सो नौकर है । मुझे भी एसा ससुराल मिल जाता तो आज टैक्सी नहीं चलाता …….। थोड़ी दूर पर ही रेसकोर्स फ़ील्ड था उसे देखते ही बोला यहाँ पर कुछ गधे,घोड़ों पर रुपए लगा कर घोड़े के जीतने की उम्मीद करते हैं। हमें आश्चर्य हुआ कि यह क्या कहा रहा है । उसने स्पष्ट किया कि यहाँ घोड़ों की रेस होती है ।लोग घोड़ों पर इस उम्मीद में पैसा लगाते हैं ,कि उनका घोड़ा जीतेगा …… वह आगे बोला कि यदि जिताना ही है तो स्वयं को जिताओ घोड़े को क्या जिताना ….?वास्तव में उसकी बात में दम था । मैंने मन ही मन सोचा अगर यह बात घोड़े पर पैसा लगाने वाले लोगों की समझ में आ जाए तो घुड़ दौड़ की यह दुकान ही बंद हो जाएगी । रास्ते में दिखाई देती अधिकांश बंगले और बिल्डिंगों के बारे में भी पूरा लेखा जोखा उससे पास था चाहे वो किसी फिल्म के ऐक्टर का हो या किसी अन्य का ।रास्ते में भीड़ को देख उसने बताया यहाँ पास ही लता जी का घर है यहाँ से ब्रिज बनना था लेकिन लता जी ने कोर्ट में केस कर दिया ,लेकिन अब वे तो नहीं हैं मगर कोर्ट में केस चल रहा है । दूर सामने एक ऊँची सी बिल्डिंग देख कर वह बोला वो बिल्डिंग मुकेश अम्बानी की है वहाँ तीन सो कमरे हैं दो लोग रहते हैं हेलीपेड भी है । उसके ड्राइवर को भी साढ़े तीन लाख रुपए महीने मिलता है मेरी घरवाली को मैं एक लाख रुपए भी दे दूँ तो एक साल का राशन लाकर घर में भर लेगी । वह बोला आपको मालूम है महा लक्ष्मी मंदिर से सुबह पाँच बजे लक्ष्मी जी अम्बानी के घर चली जाती हैं और रात को नो बजे तक वहीं रहती हैं लक्ष्मी जी ……! और अब सरकार भी उनकी है इसलिए सबसे ज़्यादा अच्छे दिन उनके ही आयें हैं।महालक्ष्मी मंदिर पहुँच कर हमने देखा कि मंदिर के बाहर से ही अम्बानी की बिल्डिंग दिखाई दी,तब हमें समझ आई उसकी बात । इस थोड़ी सी देर का यह सफर एक यादगार सफर बन गया । एक आम आदमी की समझ…… सोच…जो जीवन को वास्तव में स्वयं के बल पर जीता है स्वयं की मेहनत से रोज़ नित नए घरोंदे बनाता है । डा योगेन्द्र मणि कौशिक कोटा 14/06/2022

Thursday, January 7, 2016

Thursday, November 3, 2011