Saturday, April 25, 2009

दिल है कि मानता नहीं

चुनावी मौसम का मतलब ही होता है कि भाषणों का मौसम.....!कोई जोशीले अन्दाज में भाषण देता है तो कोई हाथ जोडकर। गुर्जरों को आरक्षण दिलाने का भाषण देकर पिछली बार भाजपा ने राज्य में सरकार बना ली थी और बाद में भुल गऐ। लेकिन गुर्जर समाज नहीं भूल पाया जिसका दु्ष्परिणाम यह रहा कि गुर्जरों को सत्तर जनों की बलि देनी पडी। आन्दोलन के अगुवा ही अब खुद उसी पार्टी में जा मिले हैंजिस पार्टी के विरोध का नाटक लम्बे समय तक चलाया गया था।अबकी बार फिर कुछ नेता जाति के आधार पर आरक्षण के लिऐ लम्बे-लम्बे भाषणों से जनता को लुभाने का काम कर रहें हैं। कोई सवर्णों को आरक्षण का झनझुना दिखा रहा है तो कोईजाति विशेष में आरक्षण का जहर पुनः बो रहा है।देश के इन नेताओं को न जाने कब समझ आयेगी जो हर बार नया शगूफा छोड कर जनता में जाति का जहर बो देते हैं ।और जब जनता इन्हें इनके वादे याद दिलाने की कोशिश कराती है तो ये कान में तेल डालकर बैठ जाते हैं। तभी तो आजकल जनता जूते दिखाकर अपना आक्रोश प्रकट करने लगी है। लेकिन ये तो बस दिल है कि मानता नहीं .....आखिर नेता जी जो ठहरे........!______________________________________________________________________________________
गृह विहीन गृह मन्त्री





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हमारे देश के नेताओं का भी अजब आलम है। उनके पास वैसे सम्पत्ति करोडों की मिल जायेगी लेकिन किसी के पास दुपहिय नहीं है तो किसी के पास चार पहियों की गाडी नहीं है । भले ही चार- चार वाहन दरवाजे के बाहर हर समय खडे रहते हों।आजतक किसीने इन जनसेवकों को टेम्पो या ऑटो में सफर करते भी नहीं देखा होगा।कुछ तो इससे भी चार कदम आगे हैं । पूरे देश के हर एक व्यक्ति को घर दिलाने का वादा करेगें और स्वयं के पास दस बाई दस फिट का कहीं एक घर भी नहीं मिलेगा। ओर किसी की तो हम क्या कहें ,हमारे गृहमन्त्री जी आज तक गृह विहीन ही हैं। जबकि भाषण देते हैं सबको घर मुहैया कराने का.......!भैय्या जी को जब मालूम हुआ कि गृह मन्त्री जी ही गृह विहीन हैं तो बोले -सभी को घर के सपने दिखाते हैं तो भला खुद के लिऐ को घर क्यों नहीं बनवा लेते.....?मगर दुसरा सच ये है कि इन नेताओं को खुद के खर्च पर घर बनवाने की भला क्या जरूरत है।ये तो जनता के खून पसीने से बने बडे बडे बंगलों में मुफ्त में ही जिन्दगी गुजार देते हैं जिसका नल और बिजली का बिल तक जनता ही भरती है।इन्हें तो घर बनाना भी होता है तो काले सफेद सभी धन को मिलाकर घर के ही अन्य लोगों के ही नाम से घर बनायेगें ताकि जनता की निगाहों में तो फिर भी सफेद पोश घर विहीन ही रहेगें बेचारे जन सेवक जी.......?

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