Thursday, April 23, 2009

महारानी जी घर आई हो राम जी


मेडम रूठे हुऐ नेता जी को मनाने उनके घर पहुँचीतो नेता जी का पूरा परिवार ही मेडम के स्वागत के लिऐ तैयार था। मालाऐं पहिनाई गई ,छाछ पिलाई, मिठाई भी खिलाई। सभी प्रसन्न.....। खास तौर से नेता जी और मेडम यानि कि महारानी जी.....।सभी की बाँछे खिली थी।प्रसन्नता होनी भी चाहिऐ....राजस्थान की महान हस्ति जो पधारी थी, नेता जी को वापस घर बुलाने के लिऐ और उनका साथ माँगने के लिऐ......? घर के सदस्यों की खुशी से ऐसा लग रहा था जैसे हर कोई गुनगुना रहा हो -महारानी जी घर आई हो राम जी.......!
एसे में जुम्मन चाचा ने चाय की चुस्की लेते हुऐ भैय्या जी को छेडते हुऐ कहा-कल तक महारानी जी को पानी पी-पीकर कोसने वाले नेताजी अचानक महारानी जी की शरण में कैसे आ गये...? भैय्या जी तपाक से बॊले-नेता जी महारानी जी की शरण में नहीं आऐ हैं वो तो स्वयं ही आई थी नेता जी के द्वार पर....।जुम्मन चाचा बोले-बात तो एक ही हुई....ये गये या वो आई, क्या फर्क पडता है........?
--फर्क कैसे नहीं पडता है....? अभी जरूरत तो उन्हीं को है न अपने बेटे के लिऐ......और पार्टी की साख बचाऐ रखने के लिऐ ।नेता जी का क्या वे तो आराम से बैठे थे.......?
_भैय्या जी हकीकत तो ये है कि जरूरत तो नेता जी को भी थी.....। उन्हें तो जमीन पर पैर रखने की भी जगह नहीं दिख रही थी। वह तो किस्मत अच्छी थी जो वे ही आगे होकर आ गई।वरना कॉग्रेस ने तो आयना दिखा ही दिया था......। ऐन समय पर उन्हें चोराहे पर लाकर खडा कर दिया....आखिर जाते भी तो कहाँ जाते नेता जी .....?
--आप भी जुम्मन चाचा क्या बात करते हो ....हमारे नेता जी आखिर गुर्जर समाज के नेता हैं ।
-शायद समाज की उसी नेतागिरी को भुनाने की कोशिश में लगे थे नेताजी.......! तभी तो समाज के नाम पर हीरो बने एक नेता जी ने तो पहले ही भाजपा से टिकिट ले ही लिया अब ये भी कुछ पुरुस्कार पाने की उम्मीद में वापस आ गये शायद......? इन्हें लगता है कि इनके समाज की याद्‍दास्त बहुत कमजोर है शायद इसीलिऐ आरक्षण के नाम पर सैंकडों नारियों की मांग से सिन्दूर पौछने वालों के ही साथ आज ये वापस कन्धे से कन्धा मिलाकर खडे हैं।उन विधवाओं का सामना करने में इनके पैर नहीं डगमगाऐगें क्या......?
--जुम्मन चाचा ये राजनीति है इसमें काहे की शर्म......!हमारे नेता जी ने तो कह दिया है कि राजनीति में कोई व्यक्तिगत दुश्मन नहीं होता.....।अब तुम अपने ही घर को ले लो पिछले साल जब तुम्हारा बेटा तुमसे नाराज होकर चला गया था घर से निकल कर ,तब तुम भी उसे मना कर वापस घर लेकर आये थे कि नहीं......?अब पार्टी भी तो इनका घर ही है उन्होंने मनाया और ये मान गये बस बात खत्म......!काहे को जरा सी बात को लम्बी किये जा रहे हो तुम भी......?
वैसे बात भी सही है वे रूंठे मनाये हमें क्या लेकिन जो बच्चे इनकी राजनैतिक रोटियों के चक्कर में अनाथ हो गये.......जिनका सुहाग उजड गया......जिन बहिनों के हाथ की राखियां हमेशा के लिऐ उनके हाथों में ही रह गई उनक भला इनकी राजनीति से क्या लेना देना था....?इन सब सवालों का जबाब तो इन्हें देना ही चाहिऐ...........?
डॉ. योगेन्द्र मणि

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