Tuesday, March 31, 2009

तलाश है घटती मंहगाई की


तलाश है घटती मंहगाई की---- -- - -?

जुम्मन चाचा कल सुबह-सुबह दूध वाले से उलझ गये-क्यों भैय्या जी बेवकूफ समझा है क्या? मुफ्त में चूना लगा रहे हो।मंहगाई दिन-ब -दिन घट रही है और तुम हो कि दूध के दाम बढ़ाऐ जा रहे हो......?दूध वाला बार- बार समझा रहा था कि चाचा तुम्हें किसीने गलत बताया है सभी चीजें तो मंहगी हो रही है,लेकिन जुम्मन चाह्चा हाथ में अखबार लेऐ अड़े थे। उनकी इस खीचा तानी के बीच टांग फसाते हुऐ हमने कहा-जुम्मन चाचा आखिर माजरा क्या है जो सुबह -सुबह उलझ रहे हो ।जुम्मन चाचा बोले- आप ही बताइऐ अखबार में लिखा है कि पिछले सात महीने में मंहगाई 12.63 से घटकर 0.27 रह गई है पर ये हैं कि मानने को ही तैयार नहीं है। सात महीने में तीन बार दूध के दाम बढ़ा दिये ।आखिर कहाँ गई मंहगाई ?
बात भी सही है सरकर भल क्यों झूट बोलेगी। सरकार भले ही झूट बोल भी जाऐ पर आंकड़े तो कहीं पर टिके ही होगें ।इस बीच भैय्या जी भी प्रकट हो गये, बोले-किराने वाला लाला हर महीने बस ला-- ला ही करता रहता है। महीने का बजट है कि जेब में समाता ही नहीं । हर महीने जेब से बाहर छलांग लगाने की कोशिश करता रहता है।लेकिन अखबारी आंकड़े कह रहे है कि पिछले तैतीस सालों में मंहगाई की दर इतनी घटी है। अब घटी हुई मंहगाई किसकी जेब खा गई ,समझ नहीं आ रहा है। क्यों भाई जुम्मन चाचा तुम्हारी जेब में तो नहीं चली गई सारी मंहगाई ?
जुम्मन चाचा तुरन्त फट पडे-सारी मंहगाई तो लगता है यह दूधवाला ही बराबर कर देगा ।यही बात मैं कितनी देर से इस दूधवाले को समझा रहा हूँ कि जब मंहगाई घट रही है तो तेरा दूध मंहगा क्यों....?मगर नहीं साहब यह अडा है कि दूध की रेट तो बढ़ानी ही पडेगी।
अब दूध वाला बेचारा निरीह प्राणी की तरह फंसा था । धीरे से बडबडाया-अखबर में मंहगाई कं हो गई है तो दूध भी अखबार से ही क्यों नहीं लेते जुम्मन चाचा, मेरी भैंस के पेट पर क्यों लात मार रहे हो-----? तुम्हें क्या पता मेरी भैस के पेट के साथ मेरे परिवार के पाँच पेट भी जुड़े हुऐ हैं।मैं तो फिर भी मेरे बच्चों के पेट पर पट्टी बांध लूंगा मगर भैंस का पेट नहीं भरा तो दूध क्या अखबार निचोड कर निकलेगा ?
दूध वाले का कहना भी सही है।जब आम आदमी की जेब का सुराग बढ़ता जा रहा है तो घटी हुई मंहगाई गई किसकी जेब में आखिर---? लगता है इस घटी हुई मंहगाई की खोजबीन करनी ही होगी आकिर घटी मंहगाई गई तो गई कहाँ----?
भैय्या जी और जुम्मन चाचा को एक तरफ छोड भी दें तो भि सवल तो वहीं का वहीं है । हमारे घर की ले लो। श्रीमती को भी अखबर की खबर की भनक न जाने कहाँ से लग गई रात को बडा ही स्वादिष्ट भोजन खाने को मिला । खना खाते समय ही मै समझ गया हो न हो जरूर कोई संकट आने वाला है। खाना परोसने के बीच में ही घीर से बात सरकाते हुऐ बोली सुनने हो ---? मैं सतर्क होते हुऐ बोला -भाग्यवान कैसी बातें करती हो पच्चीस साल से तुमहारी ही तो सुन रहा हूँ ।भला तुम्हारे अलावा और किसी कि हिम्मत है जो मुझे सुना सके -- ?
वे थोड़ा तुनकते हुऐ बोली -बस फिर वही पुराना राग। मै कह रही थी कि अब तोसुना है मंहगाई घट रही है क्यों न दस -बीस साडियां ही ले आऐं।
अब हमारे तो गले में ही टुकड़ा अटक गया ।क्या जबाब दें भला--- ?उन्हें समझाना भी बडी टेढी खीर है क्योंकि सारा जहान समझ जाऐ मगर श्रीमती को समझना ठीक ऐसा ही है जैसे परीक्षा में कोर्स के बाहर का कोई सवाल। और सवाल भी ऐसा जिसे मैं हमेशा हल करने में फेल ही रहता हूँ।अब मुझे तो लगता है कि घटी हुई मंहगाई मुझे और आपको मिले या न मिले मगर साडी वाले की जेब मे जरूर ही हमारी जेब की महंगाई का कुछ हिस्सा जरूर ही मिल जाएगा----- या आपके पास यदि आऐ तो मुझे भी इस घटी हुई मंहगाई का दर्शन जरुर करवा देना । मैं भी तो देखूं कि आखिर घटी हुई मंहगाई की फोटो कैसी है----
डॉ. योगेन्द्र मणि

1 comment:

  1. सही है ... वास्‍तविक तौर पर महंगाई कम नहीं हुई है ... आंकडों का खेल है ... जो महंगाई दर को कम कह रहा है।

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