Friday, March 6, 2009

अंजाम-ऐ गुलिस्तां क्या होगा.

अंजाम-ऐ गुलिस्तां क्या होगा......?

जुम्मन चाचा और भैय्याजी दोनों ही भरी दुपहरी में लगभग दौडनें के अंदाज में हमारे पास आऐ।हम आश्चर्य में पड़ गये कि आखिर माज़रा क्या है।हमनें भैय्या जी से पूछ ही लिया आखिर माज़रा क्या है..? भैय्या जी बोले -बच गये...बच गये....बाल- बाल बच गये.....।हम चकराऐ-भैय्या जी तुमहारे पीछे चोर -ड़ाकू पड़े हैं क्या.....?या फिर पुलिस पड़ी है,तुम्हारे पीछे.....?भैय्या जी सांस लेते हुऐ बोले-क्या बात करते हो आप भी ...पुलिस पड़े हमारे दुश्मनों के पीछे.....।तुम्हें मालूम है आतंकी हमले ने श्रीलंका की क्रिकेट टींम को लहू लुहान कर दिया।
तभी जुम्मन चाचा ने सुर मिलाते हुऐ कहा-वो तो अच्छा हुआ कि धोनी के धुरंधर वहाँ नहीं गये थे वरना....।तभी भैय्या जी ने बात पूरी करते हुऐ कहा-वही तो...हम बच गये।क्योंकि इस समय वहाँ भारत की टीम को जाना था लेकिन मुंबई के धमाकों की धसक से ही हम तो घबरा गये थे और पहले ही हमनें हाथ ऊचें कर लिऐ थे।अब श्रीलंकाई चीते जरा जोश में थ इसलिऐ चले गये।नतीजा सामनें है....बीच में से ही मैदान छोड़ कर भागना पड़ा।
वास्तव में जुम्मन चाचा और भैय्या जी की तरह देश के प्रत्येक बुद्धी वाले जीव के मन में यही सवाल उठता है कि आखिर ये हो क्या रहा है....?पड़ोसी देश में कभी कश्मीर घाटी की आज़ादी के नाम पर चारों ओर ढ़िढ़ोरा पीटा जाता है,तो कभी किसी भी ड्रामें में कोई भी सीन फिट करके अपने तथाकथित आकाओं कॊ दिखाकर अपना खर्चा पानी निकालने की जुगाड़ में वे लगे रहते हैं।और हम हैं कि राजनैतिक दावपेचों में उलझे शांती के पुजारी की छवी को सुधारने में लगे है ।इस चक्कर में अपने जवानों का कफ़न तक नुचवाने में न्हीं चूकते।
कभी कारगिल की सीमापर सेना की बली दे दी जाती है,तो कभी मुंबई के धमाकों में स्वाहा होने के लिये इन जवानों को झोक दिया जाता है।तभी भैय्या जी ने प्रश्न किया-हमें एक बात समझ नहीं आई कि इन तोप तमंचों की आवाज और खून की होली के छीटें देश के कर्णधारों तक नहीं पहुँचते क्या....?तभी जुम्मन चाचा ने कहा-पहुँचते तो हैं, तभी तो सभी नेता तुरन्त शोक संदेश पहुँचाने में कैसी जल्दी मचाते हैं।जैसे शोक प्रकट करके उन्होंने बहुत बड़ा किला जीत लिया हो ।साथ ही बड़े जोशीले भाषण दे देगें,हम ये कर देगें ...हम वो कर देगें उसपर वजन बढ़ा देगें...और नतीजा क्या हुआ भला इन सब का ....।उनके तथाकथित आकाओं नें यहाँ आकर तो हमारे स्वर में स्वर मिलाया और वहाँ जाकर उन्हें फिर से खैरात बांट दी।साथ ही सबको समझाने के लिऐ यह भी कह दिया कि इसका उपयोग आतंकवाद से लड़ने के लिऐ ही हॊगा नहीं तो......?वैसे सभी को पता है कि इस पैसे से कोई आतंकियों आ बाल भी नहीं उखाड सकता...और न ही आज तक वे उखाड़ ही पाऐ हैं....।
इस पर भैय्या जी ने बात बढ़ाते हुऐ कहा-यही तो बात है.....पहले तो विश्व के चौधरी ने इन्हें पालने -पोसने पर खूब खर्च किया सोचा था वक्त पर काम आयेगें ...लेकिन उसे क्या पता था कि उसकी बिल्ली उसे ही म्याऊँ कर गुर्राने लगेगी....।
अब देखा जाऐ तो बात भी सही है।हिन्दुस्तान का ड़र दिखा कर ज़िहाद के नाम पर जिन शैतानों को वे बरसों से पाल रहे थे अब वे उन्हें ही गुर्राने लगे हैं।हमारे नेता तो भाषणों से काम चला लेते हैं लेकिन पड़ोसी की हालत तो ऐसी है कि उससे न तो निगला ही जा रहा है और न ही उगला जा रहा है।अब आप ही बताऐं वे भी बेचारे करें तो क्या करें...?कभी-कभी तो दया आती है और रोना भी आता है उस दिन पर जब हमनें अपने ही जिस्म के दो टुकड़े कर दिये थे,और एक को छोटे भाई का दर्जा देकर नया घर बसाने की अनुमती दे दी थी।लेकिन अब अंजामें गुलिस्तां क्या होगा.....खुदा ही मालिक है........!


ड़ॉ.योगेन्द्र मणि

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