Thursday, March 19, 2009

आचार संहिता

आचार संहिता
आजकल जहाँ भी जाओ सरकारी दफ्तरों में मायूसी सी छाई लगती है। वैसे तो सरकारी दफ्तर अपनी कार्य शैली के लिऐ सभी जगह प्रसिध्द है। वह दफ्तर जहाँ हर कार्य सरकते -सरकते अपने लक्ष्य तक पहुँचने की कोशिश करता है वास्तव में सरकारी दफ्तर कहलाने का हक रखता है।अब दफ्तर तो दफ्तर है वह चाहे नगर निगम का हो, पंचायत समिती का हो ,या कि फिर कलेक्टर का ही क्यों न हो । क्योंकि यहाँ सब काम नियम और कायदे कानून को ध्यान में रखकर किये जाते हैं।
अभी चुनाव का मौसम है। और वह भी लोकसभा चुनाव सर पर हैं ।सभी पर चुनाव का भूत सवार है। राजनीतिक लोगों के सर पर तो चुनाव का भूत सवार रहता ही है ,लेकिन सरकारी अफसरॊं को अपनी अफसरी का असली मजा अभी आता है।आचार संहिता के मौसम में अफसर सर्वगुण तथा सर्वाधिकार सम्पन्न होता है ।वरना बेचारा हर समय एक टेम्परेरी जनसेवक के सामने हाथ बांध कर जुबान पर ताला लगाये चुपचाप खडा रहता है ।कई बार तो स्थिती ऐसी आजाती है कि जनसेवक महाशय जनता में अपना झंडा गाडने की कोशिश में जब चाहे सरकारी अधिकारी की खाट खडी करने पर तुले रहते हैं।लेकिन इस सारे झमेले में जिस जनता के लिऐ सारी उठा -पटक की जाती है सबसे ज्यादा भुगतना उसी जनता को पडता है।
अब भैय्याजी साल भर से परेशान है उन्हॊंने ईमानदारी से एक रजिस्ट्री शुदा प्लाट पर मकान बनाने का सपना सजोंकर मकान का नक्शा, दफ्तर में जमा करवा दिया इस उम्मीद से कि नियमानुसार निर्माण की इजाजत लेकर ही मकान बनाऐगें।अब पहले तो बाबु सहब जी को फाइल देखने का समय नहीं मिला ।फिर फाइल सरकी ही थी कि आचार सहिंता नामक,कोई ब्रेकर आगया उनका कहना था कि विधान सभा चुनाव है।चुनाव के बाद साहब जी नई सरकार के हिसाब से अपने आप को फिट करने में लगे रहे। और अब फिर एक बार दूसरे बडे चुनाव यानि लोकसभा के चुनाव की आचार संहिता लग गई इसलिऐ काम बंद, फाइल बंद भैय्याजी का मकान बंद।हम जैसे समझदार लोगों ने उन्हें पहले ही समझाया था कि भैय्या जी परमीशन के चक्कर में मत पडो,जैसे मरजी आऐ बनो लो लेकिन नहीं साहब हम देश के सच्चे नागरिक हैं नियाम से ही कार्य करेंगें ।अब करो नियम से ,आचार संहिता ने भी तुम्हारी हसरत पूरी कर दी।अब इनके ऊपर पहुँचने से पहले इनकी फाइल ऊपर पहुँच जाये तो खुदा का शुक्र मनाना चाहिये।
नलों में पानी नहीं आ रहा-जाबाब है आचार संहिता लगी है ।चोर उचक्के दिन दहाडे हाथ साफ कर जाते हैं -या कुछ भी कहो ,एक ही जबाब है-क्या करें आचार संहिता लगी है।विधवा की पेंशन छः माह से नहीं मिल रही -एक ही राग है -क्या करें आचार संहिता लगी है ?कलेक्टर साहब का फरमान है कि आचार संहिता में कोई भी आवश्यक कार्य बंद नहीं है ।लेकिन आचार संहिता तो आचार संहिता ही है भला उसका उलंघन कोई कैसे कर सकता है।सरकारी हाकिम तो कदापि नहीं।
मेरी समझ में नहीं आता कि यह आचार संहिता है या कि काम रोको आदेश।जहाँ तक मेरी मोटी बुद्धी की समझ है आचार संहिता का मतलब है नियमानुसार कार्य करना।या इसे यूँ कह सकते है कि एक निश्चित नियमावली के अंतर्गत आचरण करना ।अब देखा जाऐ तो हमेशा ही सरकारी दफ्तरों में कार्य शायद नियमों के अनुसार ही होता होगा।फिर आज ही बात -बात पर आचार संहिता बगार लगाने की क्या आवश्यकता आ जाती है ।
सड़कों पर गाय भैस दौड लगा रही है नगर निगम वाले भैय्या से बोलो कहेगा आचार संहिता लगी है क्या करें।राजनीती वाले भैय्या अपनी लंगोटी संभालने में लगे हैं कहते है अभी बात मत करो चुनाव हो जाने दो बस यदि हमारी सरकार आ गई तो हम तो हम इन सबकी ऐसी तैसी कर देगें लेकिन अभी सरकारी अधिकारी के हाथ में आचार सहित संहिता का ड़ंडा है। इस डंडे से फिलहाल ज्यादा नहीं तो थोडा ही सही दबना तो पड़ता ही है।वैसे चुनाव ने बाद हम सब देख लेगें।
आचार संहिता का लोगों को कुछ लाभ भी मिलता है।आचार संहिता के मौसम को कुछ लोग भूमि पर अतिक्रमण करने का सबसे अच्छा मौसम मानते हैं।जहा मरजी आया पत्थर डाल दिये और हो गया कब्जा जमीन पर अपना । क्योंकि भूमाफिया जानते हैं कि फिलहाल उन्हें कोई रोकने वाला नहीं है।जहाँ तक फैल-पसर सकॊ कब्जा जमाओ,बाद में सरकार किसी की भी हो सब देख लेगें । क्योंकि इनका क्या गंगा गये गंगाराम और जमना गये जमना दास।
अब भला हम भी क्या कहें आचार संहिता जो लगी है ।न जाने कब हम पर भी आचार संहिता लागू हो जाये।क्योंकि जब से आचार संहिता की धूम हो रही रही है तब से ही हमारी श्रीमती जी को अजब रट लग गई है।कल सुबह -सुबह बोली- सुनते हो बाजार में एक नया अचार आया है आपने बताया नहीं ।हम चकराऐ-भागयवान किस अचार की बात कर रही रही हो।वह तपाक से बोली _लो कर लो बात ,तुम्हें नहीं मालूम,अभी लेटेस्ट ही तो आया है अचार संहिता।अब आप ही बताऐं भला मैं अपनी भोली-भाली श्रीमती को कैसे समझाऊँ अचार और आचार की संहिता?
मुझे तो इतना ही समझ आता है---

जब से मेरे शहर में ,आचार संहिता आई
बाबूजी गुम होगये,अफसर ने आँख दिखाई ।
अफसर ने आँख दिखाई,सभी बस मौन रहो जी
नित दिन सुबह -शाम, साहब से हलो कहो जी ॥



डॉ.योगेन्द्र मणि

3 comments:

  1. जब से मेरे शहर में ,आचार संहिता आई
    बाबूजी गुम होगये,अफसर ने आँख दिखाई.......बहुत खूब लिखा है
    आपका और आपके इस ब्लॉग का स्वागत है ...

    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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  2. dr. saahab khoob kharee kharee keh rahe hain aap maja aayegaa aapko padhne mein.

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  3. mani ji main ne apka sare lekho ko padha aur apka dhanyabad karta hun ki apne itne sundar bicharo ko sabke sath bant rahe hai....apke in sundar bicharo ko dekh kar main ek ummid karna chahta hun ki ap apne in bicharo se mujhe bhi mere kavitaon main kuch alag karne ka prerna denge....sankar-shah.blogspot.com

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