Friday, March 6, 2009

फरमाइश श्रीमती जी की

फरमाइश श्रीमती जी की .......

सुबह -सुबह चाय के प्याले के साथ जैसे ही श्रीमती जी ने अवतार लिया तो हम उनकी मधुर मुस्कान देखकर चौके और अच्छी तरह समझ गाऐ कि जरूर कोई न कोई विशेष बंम विस्फोट होने वाला है।जिसके तीखे घाव हमारे ही सीने पर होने वाले हैं।न जाने कितना बड़ा विस्फोट होगा.....?हम इसी उधेड़-बुन में लगे थे कि श्रीमती जी ने हमारी तंद्रा तोड़ते हुए कहा-सुनते हो.......!मैं भी भला उन्हें कहाँ तक समझाऊँ कि भाग्यवान पिछले पच्चीस बरस से तुम्हारी ही तॊ सुन रहा हूँ।ओर फिर भला किसी दूसरे की क्या मजाल जो हमें सुना दे...हम खाट ही खड़ी कर देगें उसकी । हालाँकि हम धीरे से ही बड़बड़ाए थे मगर ऐसी बातें उन्हें बहुत जल्दी सुन जाती हैं ।न सुनने की तोहमत तो केवल हमारे ही माथे पर ट्रेडमर्क की तरह चिपकी हुई है।
वे बोली-आप फिर वही पुरानी धिसी -पिटी बातों को मत बड़बड़ाया करो...।युँ पड़े रहने से कुछ नहीं होगा,कुछ करॊ ताकि हमारे भी सारे पाप धुल जाऐं और चैन से जिंदगी गुजार सकें।मैं कह रही हूँ कि आप मुझे मंत्री बनवा दो बस.......।
हम सकपकाऐ और धीरे से संभलते हुऐ बोले -भाग्यवान माँगन ही था तो दो-चार साड़ी माँग ली होती कम से कम हमारे बूते में तो थी।लेकिन यह तो चाँद मांगने जैसी बात हो गई।तुम्हें मालूम भी है तुम क्या कह रही हो....?मंत्री पद बाजार में मिलता है क्या जो तुम्हें ला कर दे दूँ।राज्य में मंत्री तो मुख्यमंत्री जी बनाते हैं ....यह उनके अधिकार क्षेत्र की बात है.....। वे तपाक से बॊली-वही तो ...मुख्यमंत्री जी के अधिकार क्षेत्र की ही तो बात है,इसीलिऐ आपसे कह रही हूँ...और आपकी तो उनसे अच्छी पटती है...।
हमनें समझाने की को्शिश करते हुऐ कहा-भाग्यवान मंत्री बनने के लिऐ बड़े पापड़ बेलने पड़ते हैं...और फिर तुम ठहरी निपट गंवार,अंगूठा छाप.....अपना नाम तक तो लिख-पढ़ नही सकती.ओर तो ओर एक घर तक तो तुमसे ठीक से चलता नहीं है मंत्री बनकर सरकार क्या खाक चलाओगी....?
लेकिन वे भला हथियार ड़ालने वाली कहाँ थी बोली-अजी आप भी क्या बच्चों जैसी बातें करते हो....।मैंने क्या कम पापड़ बेले हैं इस घर में...।रही बात अंगूठा छाप की तो आप अंगूठा छाप कहकर महिलाओं का अपमान कर रहें हैं ।वैसे भी कौनसी किताब में लिखा है कि बिना पढ़ा-लिखा मंत्री नहीं बन सकता....?
हम उन्हें कैसे समझाते कि यह कोई बच्चों का खेल नहीं है।सरकर चलाने में अच्छे-अच्छों के पसीनें आ जाते हैं लेकिन वे भला कहाँ चुप बैठने वाली थी बोली-क्यॊं बिहार में नहीं चली थी क्या सरकार.....?एक वे हैं जिन्होंने अपनी पत्नी को पूरा बिहार सौप दिया और एक आप हैं कि एक कुर्सी के लिऐ बहाने बना रहें हैं।अब यहाँ रजस्थान में तो बिल्कुल ताजा -ताजा ही उदाहरण है,यहाँ भी तो अभी- अभी बनाया ही है अनपढ़ महिला को मंत्री...।वैसे भी सरकार चलाने में किसीको करना भी क्या है। सरकार तो आई.ए.एस.,स्तर के सचिव अपनें आप चलाऐगें। आखिर वे वेतन किस बात की लेते हं....?
देखा जाऐ तो श्रीमती जी की बात भी सोलह आने सही है। हमारे देश में संविधान ही कुछ एसा है कि दफ्तर का चपरासी बनने के लिऐ पढ़ा-लिखा थोड़ा बहुत तो होना ही चाहिऐ ,लेकिन मंत्री ,एम.एल ए.,एम.पी.,बनने के लिऐ पढ़ा- लिखा होने की भी जरूरत नहीं।योग्यता के नाम पर राजनैतिक हथकंडों में निपुणता और जोड़- तोड़ में माहिर होना जरूरी है ..बस....!
मंत्रीजी अंगूठा टेक हों या चार जमात पढ़े हों कोई फर्क नहीं पड़ता ।पर एक पढ़ा लिखा सचिव जरूर ऐसा होना चाहिऐ जो हाथ बाँधर मंत्री जी की जी ह्जूरी करता रहेऔर उनकी ड़ाट खाने के लिऐ हर समय तैयार रहे ।हाँलाकि कभी कभी मंत्री जी की बेवकूफी का ये फायदा उठाते हुऐ सारी मलाई ही चट कर जाते हैं।और ज्यादा हल्ला हुआ तो जाँच बैठ जायेगी।इन जाँच में भला आजतक कोई नतीजा निकला है जो अब निकलेगा ,यह बात ये अधिकारी वर्ग अच्छी तरह से जानता है। इन्हें यह भी मालूम होता है कि किस मंत्री को कहाँ तक चलाया जा सकता है।
जो अधिकारीजितना अधिक मंत्री जी की ड़ाट फ्टकार खाने का आदि होता है वह उतना ही योग्य और कर्तव्य निष्ठ अधिकारी की श्रेणी में गिना जाता है,और वक्त -बेवक्त ईनाम भी पाता रहता है।इसीलिऐ जब से श्रीमती जी ने मंत्री बनने की अपनी इच्छा को सार्वजनिक किया है,तब से मेरे दिल में भी कभी -कभी खयाल आता है कि.............?

ड़ॉ.योगेन्द्र मणि

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