Wednesday, March 4, 2009

बन्द का पाबन्द मेरा देश

बन्द का पाबन्द मेरा देश

“"‘क्यों जी यह बन्द क्या बला है ? कभी शहर बन्द ,तो कभी राज्य बन्द, तो कभी भारत बन्द....?बन्द न हुआ मलेरिया बुखार हो गया जो कभी किसी को तो कभी किसी को अपनी पकड़ में जकड़ लेता है।”"
सुबह -सुबह आँख खुलते ही बेड टी के साथ नाश्ते में प्रश्न परोसते हुऐ श्रीमती जी ने हमारी ओर हसरत भरी निगाहों से देखा जैसे कह रही हों नाश्ते में हलवा मैनें बडे चाव से बनाया है।खाइऐ न.....!हम उनकी आँखॊं में आँखे ड़ालकर कुछ कहने की सोच ही रहे थे कि वे बड़े आग्रह भरे स्वर में बोली ,"बतलाइऐ न........?हम भला क्या बतलाते? बात टालते हुऐ हमने कहा ," बेगम क्यों खामाखा सुबह -सुबह बन्द और खुले के चक्कर में पड़ती हो।हम भारत जैसे महान देश में रहते हैं।इतने बड़े देश में कहीं न कहीं कुछ न कुछ होता ही रहता है और होता ही रहेगा।तुम तो अपने दिल की खिड़कियों को हमेशा खोले रखना बस.....।यह बन्द- वन्द तुम्हारी सीमा के बाहर की बात है।’" इतने पर वे तुरन्त तुनक कर बोली,"क्यों मैं बेवकूफ हूँ क्या जो आपके समझाने पर भी नहीं समझ सकती। आपने कल संदूक बन्द करने के लिऐ कहा मैंने किया या नहीं ..?आपकी कविता को छोड़ कर आपने जो भी बात समझाई मैंने पल्लू से बाँध ली। मेरी हर साड़ी के पल्लू में आपको दो-चार गाँठें मिल ही जाऐगी....!आखिर मैं भी पाँच जमात पढ़ी हूँ। शादी के समय मेरी माँ ने कहा था,बेटी पति की हर बात पल्ले से बाँध लेना ...वो दिन है और आज का दिन है.....।"
-"बस देवी बस हम समझ गये आप बहुत समझदार हैं,मगर बन्द के चक्कर में हमें क्यॊं पाबन्द कर रही हो......?"
हम चाय की चुस्की लेने लगे तो उनका मुँह फ्यूज बल्ब की तरह प्रकाश हीन होकर लटक गया।इस फ्यूज बल्ब के तार को पुनः जोड़ने की प्रक्रिया में हम बोले,"देखो बेगम यदि तुम्हें हमसे कोई शिकायत हॊ और हम कान में तैल ड़ाल कर पड़े रहें तो तुम क्या करोगी...?"
-"हम अपनी शिकायत दोबारा आपसे करेंगे।"
-"हम फिर भी न सुनें तो.....?"
-"मै और जोर से अपनी बात कहूँगी।"
-"फिर भी न सुनें तो......?"
-"कैसे नहीं सुनोगे....?फिर मुझे गुस्सा आ जाऐगा ..... हाँ नहीं तो........।"
-"मान लो फिर भी नहीं सुना तो...."
-"अजीब आदमी हैं आप...?कैसे नहीं सुनेंगे...आप ऐसा कर के तो देखिऐ.....!मैं आपसे बात तक नहीं करूँगी,...रोटी ,पानी, चाय नाश्ता सब बन्द......।"
-"बस ..बस देवी बस...ऐसा ही होता है बन्द।"
-"क्या ?" श्रीमती जी मुँह फाड़ कर हमारी तरफ देखने लगी।हमने अपने पास बैठाते हुए शांत स्वर में समझाया,-"जब सरकर धीरे से नहीं सुनती तो हमें घंटियां बजानी पड़ती हैं,फिर ढ़ोल,बाजे और फिर पूरा नक्कारखाना....,,काम बन्द...बाजार बन्द...,ये सब ऐसे ही हथियार हैं।"
लेकिन देवी जई को हमारी बातों से संतुष्ट नहीं थी बोली-,"यह भी कोई बात हुई ..आजकल हर दूसरे महीने बन्द होता है।कभी कभी तो हर सप्ताह....जरा सी बात हुई कि हो गया बन्द....।"
-"कुछ तो उठा पटक करनी ही पड़ती है न श्रीमती जी, अखबारों में छपने के लिऐ।"
-"भाड़ में जाऐ ऐसी उठापटक.....! पाँच आदमियों ने मिलकर फैसला कर लिया ...और हो गया बन्द...क्या उन्होंने कभी सोचा है कि जो मजदूर रोजाना कमाता है और रोजना खाता है...यदि वह मजदूरी पर नहीं जाएगा तो आपके बन्द से उसके पेट की सूखी आँतॊं की ऐंठान कम हो जाऐगी क्या....?"
-"भाग्यवान ये झंड़े वाले लोग सब कुछ उन्हीं के लिऐ तो कर रहें हैं ..देखती नहीं इनकी एक ही आवाज में पूरे बाजार में मुर्दानगी छा जाती है।"
-"आप क्या समझते हैं सभी अपनी इच्छा से बन्द करते हैं.....?बड़ा दुकानदार तो इसलिऐ बन्द करता है चलो इस बहाने थोड़ा आराम तो मिलेगा।उसकी तो एक महीने भी दुकान बन्द हो जाऐ तो कोई फर्क नहीं पड़ता।लेकिन छोटे दुकन्दार गालियां देते हैं बन्द के नाम पर....!वे बन्द करते हैं तो केवल इसलिऐ कि आज का उपवास कर ले गें कोई बात नहीं...! यदि वे बन्द न करें तो लोग उनका धंधा बन्द करवा देगें सब कुछ लूट कर.....।"
जैसे सत्तापक्ष के लोग प्रधानमंत्री का भाषण बड़ी शांती से सुनते हैं उसी तरह हम भी श्रीमती जी का भाषण बडी तन्म्यता से सुन रहे थे।हमने धीरे से उनके प्रवचनों में व्यवधान ड़ालते हुऐ कहा-,"बेगम तुम सत्ता पक्ष में शामिल हो गई क्या...?इस पर वे तुनक कर बोली -,"भाड़ में जाऐ सत्त पक्ष ओर विपक्ष दोनों ही....।हमें किसी से क्या लेना देना।सभी अपनी अपनी रोटियां सेकनें में लगें हैं और राजनैतिक उठापतक में पिसता है केवल वही गरीब जिसने इन्के लिऐ आपना रात दिन एक कर दिया तथा पक्ष और विपक्ष दोनों ही भाषणों में इसी गरीब की भलाई की दुहाई देते नजर आऐगें।"
हम भी अब भला क्या कहते श्रीमती जी ने तो हमरी बोलती ही बान्द कर दी...?अब हम तो न इधर के रहे न उधर के ...।त्रिशंकु की तरह बीच में लटक कर रह गाऐ।हमने श्रीमती जी का ऐसा सारगर्भित प्रवचन पहली बार सुना था।हम भी आम आदमी की तरह व्यर्थ में ही अपनी बुद्धी खर्च कर रहें हैं।इस बन्द के चक्कर में..।लेकिन फिर भी हम मिट्टी के माधो कब तक बनें रहेंगे।अपना और अपने पड़ोसियों का हित हम नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा।वैसे हम भी किसी को क्या समझाऐ क्योंकि अभीतक हम भी नहीं समझ पा रहें है कि माजरा क्या है....?

डॉ.योगेन्द्र मणि

9 comments:

  1. आपका हिन्दी चिट्ठाजगत में हार्दिक स्वागत है. आपके नियमित लेखन के लिए अनेक शुभकामनाऐं.

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  2. स्वागत है.हर दिन कुछ नया मिलेगा इस उम्मीद के साथ.

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  3. आपकी बातों से निश्वित ही मैं सहमत हूं। बंद सबका, सब जगह बेडा गर्क कर रखा है। आशा है भविष्‍य में भी आप ऐसे ज्‍वलंत मुदों पर लिखते रहेंगे।

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  4. achhe lekhan hetu...meri shubhkaamnayen...

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  5. हिंदी ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है ,आपके लेखन के लिए मेरी शुभकामनाएं ...........

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  6. ब्लोग जगत में स्वागत के लिऐ धन्यवाद

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